संदेश

तखत

  संकेत ------- ------- अपलक , संगीत  हृदय  हीन , प्रधानता।  नहीं  कभी कोई  खट -पट , हटा  ध्यान हो गया  जीव नष्ट ।  नारी को  जयमाल है  वरण  का चौखट  आहट  सुख-दुःख झट-पट , सक्रिय  कान्तार का आखेट साँसों का  मरण , मीनारों पर  जलपोतों का  गन्तव्य , स्तम्भों पर दिशा बोधव्य , भँवर  नदियों में   आपदा ।  धूम्र  अग्नि  पथ-प्रदर्शक ।  कवि का  बना अभिज्ञान  तर्जनी विनाशवान  संकेत  गति  होना  मन्थर रुकना   चलना  दैहिक से  रेखांकित  मानचित्र  फलक  गतिहीन  बने  गतिमान  खेचर  जलचर  थलचर की  जीवनरेख  पढ़ जाते  भविष्य वेत्ता   मस्तक का  लेख अमिट  सब  संकेत  भेंट । -------0------

भेड़िया और कबीर

  भेडिया और कबीर    ******* हो   रहा   कालचक्र   का    फेर   । भेडिया   हो    गया   दो   पैर   । बगुले    उजलेपन    से   मनाते   खैर   । अब   तो   अपनेपन   से   हो   रहा   बैर   । कबीर   की   बानी   का   था   टेर   । ताते   तो   कौआ   भला , तन - मन   एक   ही   रंग   । दो   पैर   भेड़िया   ओढ़े   उज्जर    रंग , बगुले   भी    मात   खा   गये  , श्वेतवसन    खीर   भात   खा   गये   । जंगल - पहाड़ - नदी   छोड़   शहर   आ   गये   । योजनाओं   में   कुछ   ऐसा   छा   गये   । एक   साथ   कई   शिलान्यास   आ   गये   । गाँव  - नगर   का    साथ   खा   गये   । जाड़ा   गरमी   बरसात   पचा    गये। बाजारीकरण   के    मुखौटे   बना   गये   । हौसले   से   फैसले   तक  , पीत - स्याह - सफेद   में   छा   गये   । फक्कड   कबीर   थे , फक्कड   रहे   फक्कड़ी   में   समा   गये   । उज्जर   रंग   के   गुण समय   रहते   समझा   गये। इंसानियत   का   श्वेतपत्र   दिखला   गये   ।।     ----0----  45- भेडिया और कबीर

भवितव्य

  भवितव्य   ^^^^^^^     उस नींव की गहरी दीवार का क्या करोगे ।   कुल के सम्भार आचार का क्या करोगे ।   भंवर में नाव संग पतवार का क्या करोगे ।   ज़िन्दगी जब मझधार हो तब क्या करोगे ।   जब भवितव्य ही है देव के हाथ तो क्या करोगे ।   गर्वित तन , आत्म सूझता नहीं तो क्या करोगे ।   किराए की ठठरी में अहं का क्या करोगे ।   बिना विचारे कर्म कर पछताये क्या करोगे ।   जब भवितव्य ही ही है देव के हाथ तो क्या करोगे ।   अनमोल समय चूकने पर याद कर क्या करोगे ।   अपनी सोच धरी रह जायेगी तो   क्या करोगे ।   हीरा जिसे समझा वही जहर घोलेगा क्या करोगे ।   जब भवितव्य ही है देव के हाथ तो क्या करोगे ।   अतीत का परिमाप भी बदला युग में क्या करोगे ।   भवितव्य कालक्रम से मृगमरीचिका में क्या करोगे ।   अन्तर्द्वन्द्व कोलाहल विषाक्त संस्कृति में क्या करोगे ।   जब भवितव्य ही है देव के हाथ तो क्या करोगे ।   जीवन ग्रधित   कदली पत्र संग बेर का क्या करोगे ।   भवितव्य के हर द्वार पर भटकाव का क्या करोगे ।   खेवनहार जिस विधि राखन चाहे तो क्या करोगे

भला किसे अच्छा लगता है

  भला किसे अच्छा लगता है । ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^   साम की नीव  , दाम के मोल  , भेद   की   चाल पर , चलना । भला किसे अच्छा लगता है  ? उत्तेजनाओं के सहारे , वर्जनाओं को , तोड़ जाने का , भय समा जाना  , भला किसे अच्छा लगता है  ? मोह की अज्ञानताओं  , के वशीभूत  , विषमताओं में जीना। भला किसे अच्छा लगता है  ? क्रोध के रव में  , आपे से बाहर  , बकवास , भला किसे अच्छा लगता है  ? प्रेम की ललक में  , नयन मूँदें पग बढ़ाना  , भला किसे अच्छा लगता है  ? पुष्प की  , चाहत भी हो , काँटे की पीड़ा  , भला किसे अच्छा लगता है  ? लालसाओं के आसरे , कल्पनाओं के महल , सपने जगा जाना , भला किसे अच्छा लगता है  ? शान्ति के सहारे , गुमराह का , राह पर हो जाना , हाँ यही अच्छा लगता है  ? समरसताओं में जीना सभी को अच्छा लगता है  ? विषमताओं में जीना किसे अच्छा लगता है  ?       -----0----- 39- भला किसे अच्छा लगता है    

यक्ष युधिष्ठिर संवाद

  यक्ष युधिष्ठिर संवाद -ड़ा करुणा शंकर दुबे     महाभारत  ,   भारतीय संस्कृति का एक मुख्य स्रोत हैं  ,  इसके विषय में कहा जाता है   ,  जो कुछ पूरे विश्व में है  ,  वह महाभारत में है  ,  और कदाचित् जो महाभारत में नहीं हैं  ,  वह विश्व में कहीं भी नहीं है  |  रामायण और महाभारत को भारत के लोक मानस की सांस्कृतिक समृद्धि का कारण समझा जाता है  ,  यह जन-जीवन की स्मृति झाँकी है  |       महाभारत महर्षि वेदव्यास की रचना है  ,  महर्षि व्यास का जन्म नाम कृष्ण था क्योंकि उनका रंग सांवला था  ,  उनका जन्म  यमुना नदी की धारा के बीच एक द्वीप में हुआ था  , इस कारण उन्हें द्वैपायन भी कहा जाता है  ,  उनकी माता का नाम सत्यवती और पिता का नाम पराशर था  |  व्यास का एक आश्रम हिमालय के पास अलकनंदा नदी के समीप बद्रीनाथ के तट पर भी था  ,  जहाँ महाभारत की रचना की गयी  |                                            कहा जाता है कि महाभारत का    मूल ग्रन्थ नाम जय था  ,  बाद में भारत फिर महाभारत प्रसिध्द हुआ  |           महाभारत कौरव और पांडवों के चरित्र का विशद वर्णन है  ,  कौरव और पाण्डव दोनों भरतवंशी थे  ,  इसलिये भरतव