भेड़िया और कबीर
भेडिया और कबीर ******* हो रहा कालचक्र का फेर । भेडिया हो गया दो पैर । बगुले उजलेपन से मनाते खैर । अब तो अपनेपन से हो रहा बैर । कबीर की बानी का था टेर । ताते तो कौआ भला , तन - मन एक ही रंग । दो पैर भेड़िया ओढ़े उज्जर रंग , बगुले भी मात खा गये , श्वेतवसन खीर भात खा गये । जंगल - पहाड़ - नदी छोड़ शहर आ गये । योजनाओं में कुछ ऐसा छा गये । एक साथ कई शिलान्यास आ गये । गाँव - नगर का साथ खा गये । जा...