काहें को रोना

 बाबा अब पूछते नहीं -

 

किससे मिलने गई थी,किससे बतिया रही थी ?

 

अब बोलते भी नहीं ,शब्द अब गुम से हो गए हैं ।

 

ज़िन्दगी कैसी हो गई,उनकी उत्तेजना खो गई है।

 

झुंझलाते भी नहीं बस हमसे कुछ दूर से हो गए हैं।

 

बाबा अब पूछते नहीं -किससे मिलने गयी थी ।

 

बाबा बस हम दूर तुमसे हो गये है ...........

 

मोबाईल अंगुलियों सहारे  है बातें भी इसी इशारे है ।

 

कोई आवरण नहीं है,ज़िन्दगी  किताबी अक्षर हो गई है ।

 

 बतियाती नहीं  मानों बातें गांव से शहर हो गयी है ।

 

सामने की छींक कहर हो गई,लरजती किलकारी कहां खो गयी है ।

 

तरसते अब अपनी खुशी को हैं,पुचकारठुमके  कहां गयी है ।

 

मुड़कर  भी  देखने की चाहत ,सब छूटी  अपनी पुरानी आदत ।

 

बाबा अब पूछते नहीं -किससे मिलने गयी थी ?

 

कहां  किससे मिलने गयी थी कोई नहीं सब शून्य हो गया ।

 

आज फिर लग रहा  जैसे  शकुन्तला की अंगूठी मानों खो गई   

 

कहां  किससे मिलने गयी थी । शरमाना गुस्साना सब भूल गए ।

 

प्रश्न  मन को व्यथित करते कहाँ  गये ,किससे मिलने कोई पूछता नहीं है ।

व्यथित मन पूछ ही लिया बाबा काहें को रोना ।

 

बाबा बिन मेरे ब्याहे आपकी ,आँखे पथराई क्यों हो गई  

 

बाबा कल फिर कलियाँ खिलेंगी भौरें भी  गुंजारेंगे  

 

बाबा झूठे से एकबार डाँट दो बिटिया कहाँ गई थी  

 

ज़िन्दगी कैसी हो गई,बाबा की दुलारी ही खो गई ।।

 

                   *****० *****

  

 

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