अंगुलियाँ

 

अंगुलियाँ

सुनाते है अँगुलियों की कहानी जुबानी ।
आकार प्रकार है अपने आप में बारानी ।
बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी ।
अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।
                     
अँगुलियों में  वर्तमान का होता संबल ।
                     
इशारा  कर बनाती  अचल को सचल ।
                     
अंगुलियाँ न हो तो लेखनी न हो सबल ।
                     
तार बेतार  छिपा अँगुलियों की पहल ।
बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी ।
अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।
         
सीमाओं पर जितनी चौकसी की होती मजबूरी ।
     
उससे भी ज्यादा हथेली में होती है  अंगुली जरूरी       अंगुलियाँ थाम बापू से सीखते है सब  देश सेवा ।
     
आज अँगुलियों से  चख रहे  है  लोकतंत्र का मेवा ।
बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी ।
अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।
  
अंगुलियों  के ककाहरों ने उपजाया साहित्य भण्डार ।
      
अंगुलियाँ  बनी  कभी सुख-दुःख  का भी  आगार ।
       
अँगुलियों के  योग कालिदास विद्योत्तमा पा चुके ।
    
गुणी  करतबी अँगुलियों से अमर साहित्य  गा चुके ।
बाबासाहेब की अंगुली समता से रही भरी ।
दादी-नानी की अंगुली ममता से रही भरी ।
चाचा-दादा की अनुशासन पाठ की रही।
नाना मामा की अंगुली दुलार  की रही ।
                     
बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी ।
                     
अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।
                  
आकार में पांच अंगुली समय की प्रहरी ।
                
हर दिन हर पल अंग-प्रत्यंग की देखहरी।
किसानी में  फसल पर तर्जनी कभी  न दीजिये ।
शनि में फसें  तो मध्यमा का वरण  कीजिये ।
वर नौकरी साथ तो अनामिका में लीजिये ।
ज़िन्दगी को सरल  कनिष्ठा इशारे कीजिये ।
मुश्किलों में  कभी  अंगूठा दिखा न दीजिये ।
     
अंधों और पंगु की लाठी  अँगुलियों बिन है बेकार 
      
धीमान बिन अँगुलियों, नाविक ज्यों बिन पतवार 
  
अँगुलियों की है शान बन  अर्जुन आज भी है महान 
    
अँगुलियों के कारण  एकलव्य का जीवित है दान 
बदले है हालात अँगुलियों का रौब भी है बदला 
ज़िन्दगी के दाँव पर  ट्रिगर दबाती अंगुलियाँ 
लिपिब्रेल नेत्र हीनों को राह दिखाती अंगुलियाँ 
ढ़ोल थापों पर सुरसाज  बिखेरती है अंगुलियाँ 
              
कहाँ तक कहें  अँगुलियों की बात ही रही 
                     
स्वाद देती  यदि अंगुलियाँ हो रसभरी ।
           
अँगुलियों में फँस  रही कम्प्यूटर की जादूगरी 
            
मोबाईल की  ज़िन्दगी में छिप गयी भुखमरी ।
बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी ।
अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।
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43- अंगुलियाँ


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