यमुना छठ का महत्व
यमुना छठ का महत्व
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- डॉ०करुणा शंकर दुबे
नमामि यमुनाम् अहं सकल सिद्धि हेतु मुदा ।
मुरारि पद पंकज स्फुरद् मन्द रेणुत्कटाया।।
भारतीय संस्कृति आशावादी प्रकृति की रही है, इसी आशावाद ने आस्था को जन्म दिया है , और आस्था की पुष्टता के लिए पर्व और त्यौहार होते है, पर्व सामूहिक रुप से मनाया जाने वाला कार्य है जिसके पोर-पोर में सामंजस्य , समग्रता, भाईचारा, आध्यात्मिक उन्नति के दर्शन होते है । यह नवरात्रि, महाशिवरात्रि मौनीअमावस्या, कार्तिक पूर्णिमा है , लेकिन त्यौहार तिथि और वार के अनुसार होते है । इनका संबंध ,सदाचरण, स्नेह , ईश्वरीय प्रेम और संस्कृति के प्रति श्रद्धा का भाव होना है । इसमें महापुरुषों की जयन्ती और निर्वाण दिवस भी हो सकता है, चाहे तथागत बुद्ध की पूर्णिमा हो या भगवान् श्री राम की जयन्ती अथवा यमुना जयन्ती या यमुना छठ ।
यमुना छठ ,वासन्तिक नवरात्र की चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को श्रद्धालु भक्तों द्वारा मनाई जाती है । भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार नदियों को दैवीय शक्ति के रुप में पूजा जाता है । यमुना नदी का उद्गम स्थल हिमालय में पश्चिमी गढ़वाल के पर्वत श्रृंग बन्दरपूँछ सुमेरु के उत्तर पश्चिम स्थित कालिंद पर्वत है, जिसके नाम पर यमुना कालिंदी कही जाती है । यमुना का वास्तविक स्रोत कालिंदपर्वत के उपर जमी एक झील और हिमनद चंपासर ग्लेशियर से है , इसी ग्लेशियर से यमुना निकलती है । कुछ नीला कुछ सांवला रंग होने से इसे काली गंगा भी कहते हैं । यमुना ने अपनी बहन गंगा के साथ प्रयाग में जीवन समर्पण किया है । यमुना जी का जन्मोत्सव जयन्ती रुप में यमुना छठ पूजा के दिन मनाया जाता है । मथुरा में यमुना नदी अर्द्ध चन्द्राकर है और उसके के चौबीस घाट है, विश्राम घाट मध्य में है , इसके साथ ही चीर घाट साक्षात् देव लीला की गवाह यमुना है और भी युगल घाट, विहार घाट, श्रृंगार घाट, भ्रमर घाट गोविन्द घाट भी है सभी उत्कृष्ट महिमा के है ।
यमुना सूर्य और छाया की पुत्री है ,तथा मृत्यु के देव यमराज की बहन हैं । छाया का वर्णश्यामल है । अत: यमुना का रंग भी श्यामल है । भाई यम के वरदान से यमुना में स्नान करने वाले को मृत्यु संकट से मुक्ति की मान्यता की जाती है । ब्रज क्षेत्र कृष्ण की बाल लीला की साक्षी यमुना सदैव वन्दनीय है । गोवर्धन पर्वत और यमुना के बिना ब्रज अधूरा है । एकादशी और पूर्णिमा के दिन यमुना में स्नान का विशेष महत्व है ।
भारत वर्ष में भगवान् से जुड़ी नदियों का महत्व अलग ही है । भगवान् राम से सरयू नदी तो भगवान् श्री कृष्ण से यमुना का विशेष महत्व है । वृन्दावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थी, जबकि वर्तमान में वह गोवर्धन से लगभग दो किलोमीटर दूर हो गई हैं। गोवर्धन के समीप जमुनावती का विवरण है एक समय यमुना की दो धारा थी एक धारा नन्ददगाँव, बरसाना और संकेत (जहाँ कृष्ण राधा से पहली बार मिले), नन्दगाँव के रास्ते पर है, बहती है । दूसरी चीरघाट से होती हुई गोकुल की ओर आगे फिर दोनोँ धाराएं एक होकर आगरा की ओर चली जाती हैं । पौराणिक काल में श्री कृष्ण ने कालिया नाग का उद्धार कर विषाक्त यमुना नदी को विषहीन किया ।
कहा गया है-
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
कावेरि नर्मदे सिन्धोर्जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
ऐसी मान्यता हैं कि प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शिव की उपेक्षा एवं तिरस्कार से आहत सती के योगाग्नि द्वारा भस्मीभूत हो जाने पर शिव जी यमुना जल में कूद पड़े इससे यमुना कृष्णा( कृष्णवर्ण) हो गई । ब्रज रसिकों की
मान्यता है कि राधा माधव के जल विहार से राधा के तन में
लिप्त कस्तूरी घुलकर यमुना जल को श्यामल कर रही
है । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की छठीं तिथि को ब्रज की हृदय
स्थली मथुरा में श्री यमुना जी के पूजन-अर्चन के विशेष
आयोजन होते हैं , मथुरा के विश्राम घाट पर यमुना जी के
श्रीविग्रह का पंचामृत -अभिषेक होता है, साथ ही साथ नौका
में, एक आकर्षक और
मनोहारी झांकी सजाकर यमुना की पावन धारा में , यमुनाजी के श्रीविग्रह को दर्शनार्थ ले जाया जाता है,जिसका दिव्य एवं भव्य दर्शन पाकर श्रद्धालु भक्त जन आनंदित हो जाते हैं , सांध्य बेला में श्री यमुना जी की विशेष आरती के दर्शन होते हैं , मथुरा स्थित अन्य घाटों पर भी सुन्दर मनभावन झांकियां सजाई जाती हैं , इस शुभ दिन सांध्य बेला में मथुरा के लगभग सभी घाट , आलोकित होते हैं , इस दिन "दीपदान" की विशिष्ट परम्परा का निर्वहन किया जाता है ।
यमुना छठ के दिन घाट पर जो मेला आयोजित होता है उसमें यमुनाष्टक आरती होती है । रंग बिरंगें परिधानों में महिलाऐं यमुना मैय्या के गीत गाती हैं ।
नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्रं अति अद्भुतं ।
न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः।।
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