कविता

 

कविता

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व्याकृत नहीं ,

वर्तमान कविता ,

प्रगति प्रयोग ,

बन परिणिता,

उन्मुक्त मुक्तक ,

नामकविता,

कर्मेन्द्रियोंमेंसिमटा अलंकार ,

ज्ञानेन्द्रियों को भा रहा श्रृंगार ,

छल-छंद छानते रहे शब्द बौछार ,

रस बरसा न सकी कविता,

सुहाने रालों पर हो मन मीता ,

झट-पट का ज़माना ,

क्यों बांधें छंदों में,

कविता के पंख लगे है,

जैसे परिंदों में ,

अब रचना रच ना ,

पर भार हुई,कविता कविता ,

दुधार हुई,जो भास् रही कविता ,

कवि बखान रहे ,

अब कर ताल रही

कर ताली रही,

कविता कवि को,

निहार रही,राह किनारों में ,

कविता कराह रही,

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