देहरी का सूरज
देहरी का सूरज
देहरी का सूरज
आदमी की परछाइयों को ,
तिर्यक बढ़ा गया|
कद में आदमी
छोटा हो गया ||
धीमान,
तिर्यक हो गया |
सूरज का
देहरी पर आना ,
शायद ,
परिवर्तन है,
प्रकृति का,
जीवन का
स्पंदन का,
क्रन्दन में
हास-परिहास,
सम्वेदना,
मरती जाती है,
देहरी से बाहर,
मानवीयता
सूरज की ओट ,
किसी छाँह में,
जहां अन्धकार है,
आदमीयता,
प्यार है,
ठंडी,
दुलार है,
कोटर में रहने लगी है,
परछाई,
औसत से बड़ी होती है ||
उसमें,
छहास होती है,
ठंडक होती है,
परछाई,
सम्वेदना का नीड़ है,
तिर्यक होने का सेहरा,
किसी और के माथे है,
अब तो नदियाँ ,
सडक,
सब,
हांफने लगे है |
लपटें उठनें लगीं है,
उनके हृदय पटल से ,
उन्हें रौद रहा है,
आदमी ! सिर्फ आदमी!! ||
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