महालया

महालया शब्द का अर्थ आनंद निकेतन है, आलय अर्थात् घर इस दिन मह यानि आनंदित हो जाना है ,और महालया पर्व महाशक्ति स्वरुपिणी माँ दुर्गा के सम्मान और महिषासुर मर्दिनी के रुप में आने की सूचना है ।मार्कण्डेय पुराण के अनुसार प्राणी का अस्तित्व देह तक ही सीमित है , देह के जन्म के साथ उसका जन्म तथा देह की मृत्यु के साथ ही उसकी मृत्यु होती है

 

देह के पहले या बाद उसका किसी भी प्रकार का कोई अस्तित्व नहीं रहता है विषय सुख ही परम सुख है, और प्रभुत्व का अधिकाधिक विस्तार ही उस सुख का उपाय है ।किसी भी प्रकार उसका सम्पादन ही परम पुरुषार्थ है ।इससे परे कोई वस्तु है और इससे अधिक किसी को कुछ करना है इस प्रकार के विचार ही असुर है , और इन विचारों की पुष्टि एवं बल वृद्धि जिससे हो वही इनका अधिपति महिषासुर है

 

और वह महिषासुर का  तामस अहं भाव है,यह अहं भाव इन विचार रुप अपने असुर सैनिकों द्वारा सद्विचार रुप सुरों या देवों को पराजित कर उनके विवेक रुप इन्द्र को पदच्युत कर सत्व रुप स्वर्ग पर अपना अधिकार स्थापित करता है

 

महिषासुर का अंत करने के लिए देवी को अवतरित होना पड़ता है, पदच्युत इन्द्र और पराजित देव उस असुर का कुछ भी नहीं कर सके स्वयं भगवती को भी इसे पछाड़ने के लिए महान् समारम्भ  करना पड़ा, जब समस्त देवताओं के तेज एक लक्ष्य एकत्रित हुए और उनके संगठित रुप का नेतृत्व देवी के चरणों में अर्पित कर देवताओं ने सारे साधन उन्हें सौप दिये तब देवी महिषासुर का वध करने के लिए प्रस्तुत हुई

 

पहले अहं भाव के पोषक दुर्वविचार रुप सैनिकों का वध किया ।सेना का संहार देख विभिन्न रुपों में अहंकार रुप में महिषासुर  खड़ा हुआ, किन्तु देवी के सामने उसकी कुछ भी नहीं चल सकी ,अंततः देवी ने अपनी चमचमाती तलवार से उस असुर का शिरोच्छेद कर दिया

 

असुराधिप रुपी अहं भाव को गिरते ही देवताओं में आनन्द की लहर दौड़ पड़ी ।स्वर्ग में पुनः विवेक  रुपी   इन्द्र का राज्य स्थापित हो गया

 

वैसे तो यह पर्व पूरे देश में मनाया जाता है किन्तु पश्चिम बंगाल की मान्यता के अनुसार माँ दुर्गा कैलाश पर्वत छोड़कर नौ दिनों के लिए अपने घर सपरिवार गणेश लक्ष्मी कार्तिकेय, और सरस्वती के साथ पृथ्वी लोक पर आती है ।ऐसी मान्यता है कि इस दौरान नयी फसलों का पकना शुरु हो जाता है

 

देवी के लिए स्वागत गीत --जागो तुमी जागो बाजलो तोमार

 

                                       आलोर बेनू एवं लो माँ ... 

 

            आगमन और सम्मान महिषासुर मर्दिनी के रुप में बंगाल के लोग शाकेबि अर्थात् उच्च वर्ग और बानेदि यानि कुलीन घर के लोग नवरात्रि के छठें दिन कल्पारम्भ से पूजा आरम्भ करते हैं फिर बोधन यानि प्रतिमा का अभिषेक फिर देवी का आह्वान और देवी के अधिवास स्थान को पवित्र किया जाता है ।नवरात्रि के सातवें दिन नव पत्रिका नौ वृक्षों के नव पत्तों को पीले धागे से अपराजिता माला में बांधकर गंगा जल से पवित्र किया जाता है ये पत्ते देवी के प्रतीक है ,फिर प्राण प्रतिष्ठा होती है आठवें दिन महाष्टमी पूजा कुमारी लडकियों की पूजा होती है

 

इसी अष्टमी और नवमी के बीच संधि पूजा होती है ।महिषासुर का वध होता है ।संधि पूजा चामुंडा देवी के लिए होती है ।नवमी में महिषासुर मर्दिनी पूजा होती है ।दशमी को महा आरती होती है ।भक्त प्रतिमा के सामने पानी में प्रतिमा को देखकर विदाई देते है ।प्रत्येक अवसर पर ढाक वाद्य का वादन होता है

 

     23-महालया        ===0===

 

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