पितृपक्ष

  भारतवर्ष मान्यता और आस्था से परिपूर्ण देश है, जहां जिस प्रस्तर खण्ड पर अभी तक हम पैर रखते हुए चलते रहे थे , यदि कोई आकृति का उभार भी दीख जाये तो हमारी सोच में बदलाव ही जायेगा ।यह सचेतन की दशा है , जब वही दिवंगत पितृ रुप और अंतरिक्ष वासी पितृ परम श्रद्धेय हो तो हमारी चिंतन परम्परा अलग हो जाती है ।ऐसे के प्रति हम सभी अग्नि देव के समक्ष प्रार्थना करने लगते है कि हमारे पितृ गणों के लिए आपके माध्यम से जो कुछ भी हो हमारी आहुतियां उस लोक तक पहुंचाने में आप सहायक हो ।कृपया आप मृतात्मा को भटकने से बचाये हमारी रक्षा करें ।यह श्राद्ध पर्व मनुष्य को स्वर्ग तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करता है ।स्वर्ग के आवास में पितृ चिंता रहित और शक्तिमान आनंदमय रुप धारण करते हैं ।।पृथ्वी पर वे राज सुख समृद्धि से रहते है ।इस हेतु पिण्डदान करने की कल्पना की गई है ।पितरों से प्रार्थना की गई कि वे वंशजों के पास जायें उनका आसन पूजन स्वीकारें, उनके अपराधों से अप्रसन्न नहीं हो पितृ पूजा के समय वंशज भी अपने लिए मंगल कामना की याचना करते है ।सभी धर्म अपने अनुसार इसका पालन करते हैं।

 

जब महाभारत के युद्ध में दानवीर योद्धा कर्ण की मृत्यु हो गई तो उसकी आत्मा स्वर्ग में चली गई ।वहां उसे भोजन के रुप में स्वर्ण आभूषण आदि दिये गये किन्तु दानवीर कर्ण को तो भोजन में असली भोज्य पदार्थ ही चाहिए था ।इस पर कर्ण ने इन्द्र देव से भोजन में स्वर्ण परोसे जाने का कारण पूछा  ?इन्द्र देव ने दानवीर कर्ण को बतलाया कि दानवीर आपने पूरे जीवन स्वर्ण दान ही किया था ।कभी भी श्रद्धापूर्वक अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं कराया था ।इसी की परिणति है ।कर्ण ने कहा चूंकि वह अपने पूर्वजों के विषय में अनजान ही रहा कभी उसे किसी ने इसकी जानकारी नहीं दी थी ।इसलिए कभी पूर्वजों को कुछ भी भोज्य दान नहीं कर सका ।इस कारण मुझे सुधार करना होगा , और मुझे कृपया पन्द्रह दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति प्रदान करें, ताकि मैं श्रद्धापूर्वक अपने पूर्वजों को जो भी भोज्य है दान कर सकूं ।इसी अवधि को वर्तमान समय में पितृ पक्ष नाम से जाना जाता है

 पितृपक्ष के विषय में कहा जाता है कि पितरों के प्रसन्न होने से सारे देव भी प्रसन्न हो जाते है -

 

   पितरं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवता

 

आश्विन कृष्ण पक्ष का नाम पितृ पक्ष है, इसमें 15 दिनों तक पितरों को पिण्डदान किया जाता है, इस काल अवधि में पिण्डदान और पितरों के लिए मोक्ष अनिवार्य परंपरा है योगवासिष्ठ के अनुसार प्रेत  और पितर अपनी स्थिति को इस प्रकार अनुभव करते है कि  बंधुओं के पिंडदान से  उनका नया शरीर बना है यह भावनात्मक  ही अनुभूति होती है अपने शुभेच्छुओं से ये भावनाएं पितरों को स्पर्श करती हैं इसे प्राप्त करके पितर सुख, समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं,और पुत्रगण को पितर  कभी शाप भी नहीं देते हैं। कूर्म पुराण में इस विषय में जानकारी दी गई है यह  एक प्रकार का पूर्व जनों का श्राद्ध है, इसमें ज्ञात -अज्ञात सभी पितरों का स्मरण किया जाता है एक प्रकार से पूर्वजों की स्मृतियों को सजीव रखने का यह एक धार्मिक साधन है

 

आश्विन कृष्ण पक्ष का जब सम्मिलन होता है, तब सूर्य चन्द्र और पृथ्वी की स्थिति बनती है और पितृगण सीधे पृथ्वी पर उतर आते हैं यह एक खगोलीय स्थिति है, जो पितृ पक्ष के लिए अनिवार्य है

 

लोक मान्यता है कि पितृपक्ष में जन्म लिया शिशु कोई कुल पुरुष ही होता है ।इस पक्ष में घर में प्रविष्ट का अहित नहीं किया जाता है, क्योंकि मान्यता है कि वह कोई अपना प्रिय जन हो सकता है ।इस प्रकार की पवित्रता का पर्व है

 

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