तुम्हीं हो मेघ

 

तुम्हीं हो मेघ

 

प्रकृति की कोख से ,

अदृश्य से दृश्यमान ,

तुम्हीं तो हो मेघ ,

आस लगाये किसान ,

आतप शरद के मध्य तुम्हीं हो 

सागर ,नदी,सरोवर से तुम्हीं हो ,

पर्वत की ओट ,घर्षण या चोट

तुम्हीं हो |

रक्तिम,कालिमा ,

सिंदूरी,श्वेत का आभास ,

शीतलता,आर्द्रता 

मेघ ही जीवन श्वास 

इंद्र -बज्र की हुंकार ,

गर्जनों में भी प्रकाशमान,

मेघ-बूँद से माटी सोधती ,

ताल-तलैया रसाप्लावित लहराते ,

चारो कोरो पर दादुर गीत उच्चार ते,

प्रकृति पुरुष उदार मना,

चिरयौवन,उमड़ -घुमड़,

घहराते,ललचाते,

मयूरों को लजियाते ,

यक्ष-विरह संदेशक ,अलक-पलक उर्-झाते ,

मेघ तुम्हीं हो ,

स्वाती बूँद तुम्ही में ,

जड-चेतन अमरत्व तुम्हीं से ,

सरोवरनदियाँ अस्मिता खोने को बेबस ,

सागर खारे पानी को बरबस रोता है 

परिवर्तन की आंधी में नैसर्गिकता के झंझावातों ने ,

कृत्रिम मेघों को नभ में टांग दिया 

तुम्हीं तो हो ,

अब मेघ

बूंदों के बदले,

बजरी ,रेत लिए फिरते है ,

ज़हर घोल रहे व्योम पर,

अतीत के खेलों में ,

मेघों में हाथी खोजा करते थे 

विकास-परिधि में

झंझावात हाथ आता है ,

बंद खिडकियों के अन्दर

आर्द्रता,नमी के बदले रेत

चला जाता है ,

मेघ,

रेत के बन ने लगे है,

आर्द्रता उष्णता को समर्पित हो चली।

भारत रत है,कुछ बचाने को ,

लौट चले

मेघ लाने को ,

इस पावस में मेघ आना ज़रूर,

आर्द्रता,शीतलता को दिखाना ज़रूर ,सुनाना है

भविष्य और वर्तमान को।.....

ज़रा देख तो ऊपर

गरज रहे है

बरस रहे है ............

 ------0-------

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नागरी हिन्दी के संवाहक:महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी

आचार्य परशुराम चतुर्वेदी और चलता पुस्तकालय

केंचुल