अपनों से ही देश में हिन्दी हुई बेगानी
भाषा संस्कार देती है सभ्यता और संस्कृति का विकास करती है यहाँ जिस देश की बात की जा रही है उस देश में कितनी भाषाएँ और कितनी बोलियाँ हैं उस पर चर्चा करें तो शायद जो समय निर्धारित किया गया है वह आज के लिए कम होगा उन्नीसवीं सदीं में जब हिन्दी ने आँखे खोली तो फोर्ट विलियम कालेज कलकत्ता में विवाद हो गया कि हिन्दी का कौन सा रूप रखा जाय वह समय अंग्रेजों के युग का था एक पक्ष संस्कृत मिश्रित हिन्दी का था तो दूसरा अरबी फारसी मिश्रित हिन्दी के पक्ष में था विषय तदभव पर आकर अटक गया ,यह तदभव संस्कृत मूलक था इसी लड़ाई से दूसरी भाषाओं के लिए भी अवसर मिल गया और उसने भी हिन्दी में अपनी घुसपैठ का रास्ता खोज निकाला परिणाम यह हुआ कि समय आगे बढ़ता चला गया लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि कितने प्रकार की भाषा हिन्दी से जुड़ गयी देश की आजादी आते - आते हिन्दवी की बातें भी चलने लगीं और हिन्दी को बचाने के लिए पुरस्कार और प्रलोभन की शुरुआत भी हुई महामना मदन मोहन मालवीय जी ने तो बाकायदा अदालतों तक हिन्दी ले जाने का प्रयास किया लेकिन पैसे के बल पर कितने दिन हिन्दी टिकी रहती अरबी फारसी मिश्रित अदालते अंग्रेजी परस्त थी और वहां से बेगानी हो गयी किसी ने इस विषय पर बाद में चिन्तन नहीं किया इसी काल में उर्दू की जबान भी चल चुकी थी उसकी भी घुसपैठ शुरू हो चुकी थी हिन्दी बेचारी और लाचारी की हालत में चली गयी ,बिहार राज्य में तो हिन्दू देवी देवता के नाम के आगे बेगम और बादशाह शब्द पर हंगामा भी हुआ और हिन्दवी को नकारा गया संस्कृत वाली हिन्दी आ गयी उसी को कुछ हद तक ठीक माना गया हिन्दी कितनी भाषाओं को अपने में समेटती चली गयी यह तो पता ही नहीं चला लेकिन यह प्रचारित हो गया कि हिन्दी एक पंचमेल खिचड़ी भाषा है जिसका लाभ कालरदार टाई बाँधने वाले अंग्रेज उठाने में सफल रहे और उन्होंने अपनी अंग्रेजी को पहले नम्बर पर काबिज करा लिया उसके और भी कारण थे अलग अलग राज्य और उनकी भाषा ने हिन्दी को अलग-थलग किया संसद की राष्ट्रभाषा की जगह राजभाषा यानि कामकाज की भाषा हिन्दी बनी शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर ने हिन्दी को सीधे दूसरे नम्बर पर रख दिया किसी ने ऐसा कोई कम्प्यूटर नहीं देखा जहाँ हिन्दी के अक्षर पहले लिखे मिले विज्ञान तकनीक ने और भी हिन्दी से दूरी बनाई आज के माता-पिता अपने बच्चों को हिन्दी के माध्यम वाले स्कूलों से मोह छोडकर अंग्रेजी के स्कूलों की ओर जा रहे हैं सरकार भी अब अपनी व्यवस्था में बदलाव के लिये मजबूर हो रही है मिड डे मील काम नहीं आया बच्चे घट रहे है ड्राप आउट समस्या बनी हुई है हिन्दी माध्यम से रोजगार की सम्भावना भी घटती जा रही है , हिन्दी में नेट जेआरएफ करने वाले को कम्प्यूटर और अंग्रेजी में ज्ञान होना पहले जरूरी है,फिर हिन्दी के शिक्षक बन सकेंगे,और यह ज्ञान नहीं हुआ तो बेकार और बेगाने नज़र आयेंगे ,देश की सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश में उर्दू को दूसरी राजभाषा बना दिया है,उत्तराखण्ड जो कल तक हमारा ही था,संस्कृत को दूसरी राजभाषा बना कर हिन्दी के साथ क्या किया ,कुमाउनी और गढवाली तो पहले से ही हिन्दी को कमजोर किये थी,सभी प्रदेश अपने स्वर और सुर में हैं,तो हिन्दी बेगानी होगी ही,भारत सरकार के सभी मंत्रालयों के पत्र पहले अंग्रेजी में भेजे जाते हैं,फिर हिन्दी के लिए फालोज हिन्दी वर्जन लिखा जाता है,जो कभी नहीं आता है,हिन्दी सम्मेलन प्रकांड हिन्दी विद्वानों के लिए है,गैर हिन्दी वालों को कितना अवसर है,यह तो सभी जानते है फिर हिन्दी बेगानी क्यों नहीं होगी।
मैं उन लोगों को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मुझे आज इस विषय लिखने का अवसर प्रदान किया हम सभी संकल्प लें कि भाषा अच्छी होती है हम और हमारी सोच उसे बेगानी बना देती है समय रहते होटलों हवाईअड्डों आदि स्थलों पर हिन्दी के सम्मान के लिए चिन्तन करें ताकि बेगानी जिंदगी से भली जिंदगी भाषा के सहारे लौट सके ।
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