चाल चरित्र और चेहरा

 चाल चरित्र और चेहरा 

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चाल चरित्र और चेहरा के विषय में जब मन सोचता है,तो घबराने लगता है कि चाल तो सभी चलना सीख ही रहे है, सभी अपने तरीके से चाल चलते है ,माँ बच्चे को चलने के लिए जब सीखाती है , तो अनायास ही उसके बोल फूट पड़ते है कि बच्चे की क्या चाल है , फिर ढाल पर भी बात चलती है ,चाल प्रमुख तत्व है , जीवन के सवार या बिगाड़ में उसका बड़ा हाथ होता है, तुरुप की चाल तो कोई -कोई ही चल पाता है ।  भलमनसाहत की चाल कम लोग ही चलते है , मामा शकुनी की चाल को कौन नहीं जानता है, मुहावरे की तरह से प्रसिद्ध है , मारिच मामा की चाल और खेल में शतरंज की अपनी चाल होती है । घोड़ा-हाथी -पैदल सब अपने कायदे से चलते है, परन्तु आज के जमाने में आदमी की चाल को भांपना आसान काम नहीं है ,कूटनीति में अलग चाल चली जाती है और राजनीति में अलग चाल चली जाती है ,मुम्बई में लोग चाल में गुजर बसर करते है, परन्तु चालबाजी वहां नहीं करते है क्योकि चैन की नींद सोना होता है , यहाँ चाल चली जाती है ताकि आप दु :खी रहें ,चाल आज नित्य प्रति की जरूरत बन गया है । कोई काम आ जाय चलना ही पड़ेगा मोटर साइकिल उठा कर चल देगें ,  हरहराते- सरसराते सरपट चाल निकल जानें वाली चाल  है तो उसकी चाल भांपना ही मुश्किल का विषय हो जाता है कि कहीं हमें परेशानी में छोड़कर तो नहीं जा रहा है या खुद परेशान है, या खानापूरी की चाल चल कर चला गया है। उस पर बैठने वाले की स्थिति अलग चाल-ढाल की दिखेगी , चलाने वाले की अलग ही रहेगी ,लडकियों या महिलाओं के लिए तो स्थिती और भी बुरी है । कोई इस ओर नहीं देखता कि कैसी-कैसी गाड़ियां बन रहीं है ,क्या ये भारतीय समाज को शोभा देती है स्कूटर का भी जमाना था तब भी लोग चलते थे ,चाल में शालीनता थी ,अब तो सीधे बदनीयती दीखती है ,कारण उसकी गति है ,धीमें चलती ही नहीं ,उछालें मार कर बैठना जो पड़ता है ,भला यह भी कोई सभ्य समाज की पहचान है , समाज इसी दिन को देखकर चरित्र को आकार बना डालता है कि जब ऐसी गाडी पर घूमता है, ऐसी चाल में चलता है ,तो उसके रंग-ढंग रवैये कैसे होंगे भगवान ही जाने ,और फिर चेहरा आज के युग में जिसका छिपकली जैसा पिचका चिपकने वाला छुहारेदार बदन फूंक दो ,तो हवा हो जाय, डांट तो तो रास्ता बदल दे, कह दो तो वास्ता छोड़ दें । उनके आदर्श फिल्मों से आते है, फ्लेक्सीबल चरित्र के पल -पल में स्टेटमेंट बदलने वाले किरदार के रूप में बिना मुखौटा लगाये चेहरा देखने को मिला जायगा । चेहरा तो नाटकीय हो सकता है पात्र के रूप में जब आप अवतार लेते है तो बोली भी वैसी ही कर लेते है समय के अनुरूप चेहरा गढना मानवता ने अनादि काल से ही सीख लिया था , पराया दु :ख या अपना दु :ख देख कर उसी के अनुरूप चेहरा कर लेता है , रुआसा चेहरा कर लेने में मनुष्य को महारत प्राप्त है , उसका चेहरा तब अलग होता है , सुख का चेहरा अलग होता है,गुस्से का चेहरा अलग ही किस्म का दीखता है जिस भाव से सोचिये उसी भाव का चेहरा मिलेगा राजनीति में तो शान्त भाव किसी साधु के समाधि को मात भी दे सकते है । 

भारत इसी कारण महान भी है ,बेटा विभीषण और भैय्या आम्भी अब मोटर साईकिल पर चाल की, नई फिराक और जुगत में किसी पेड़ की ओट में खड़े होकर बतियाते मिल जायेगे,माँ -बाप को धोखा देना चरित्र की महानता का पहला पाठ है । चरित्र समाज के द्वारा अनुमोदित नियम के पालन से बनता है या अनुमोदित नियम का पालन करना ही चरित्र है । इसे कोई बनाता या बिगाड़ता नहीं है ,आप इसकी संरचना स्वयं करते है अब आप जान ही रहे होंगे कि आप का चरित्र कैसा है या आप किस चरित्र के है , भारत की नैतिकता के मायने पाठ्यक्रम का विषय है, पिता जी-या माताजी कुछ कहेगी तो न मानना बड़ी उपलब्धियों में माना जायगा ,चाल - चरित्र चेहरा बदल रहा है , नया पाठ पढने -पढ़ाने की अब जरूरत आ पड़ी है । हम सब को बदलना होगा अपने चाल को चरित्र को और पहचानना होगा । अपने चेहरे  चाल  चरित्र उचित रुप में पहचानना होगा ,तभी हमारी और हमारे समाज की भलाई हो पायेगी ।

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