भाषाई शुचिता

 भाषाई शुचिता

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 रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल। 

आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ।। 

वर्तमान समय त्रासदी का है ,सम्पूर्ण शरीर व्याधि ग्रस्त है,मन छटपटाह से भरा हुआ है ,मस्तिष्क अशान्त है,चित्त पराधीन है, यूं तो स्वतन्त्रता देह की है , और बाहर से आ रहे शब्दों की है, आज शब्दों में शुचिता, पवित्रता के अभाव ने मानवता को खोखला कर दिया है, अतीत के शब्दों में समाज की सबसे बड़ी थाती उसको झकझोरती हुई शब्दावली थी, उसके नाम को न लेने वाले को उस समय का समाज सतकर्मी कहता था  ,आज यह शब्द न जाने किस स्थान पर पहुँच गयी है,लेकिन सतकर्मियों से हट कर आम मनुष्यों की भाषा में विकार अवश्य आ गया है | प्रदेश या दुनियां का कोई भी क्षेत्र हो भाषा में जो शब्द परोसे जा रहे है,मानवता उसका चित्र अपने ऊपर अवश्य उकेर लेती है,सड़क से लेकर संसद तक जब वही शब्द चलता है,तब दु :खद लगता है,उचित होगा कि हमें अपने जीवन की शब्दावली में उचित शब्दों का कोष बनाना पड़ेगा ,जिसे समाज में परिवार में पाठ्य पुस्तकों के योग्य ही रखा जा सके ,भला हो कि अभी  पाठ्य पुस्तकों में यह शब्द नहीं है,कविता ,कहानी ,नाटक और फिल्मों के शब्द तो सतकर्मी हो चुके है,पुराने शब्दों में नासपीटे भी  है,जो संस्कृति का लोप कर देते है | आत्म सत्ता -परमात्म  लायक शब्द कब प्रस्तुत करेगी ,हम भय से ही निर्भीक होकर कुछ बोलने की स्वतन्त्रता खोकर  अपनी जिह्वा की पवित्रता भी नष्ट कर रहे है,तथागत बुद्ध ने भी कहा था कि यदि अश्लील भाषा का प्रयोग पहले आप करते है,तो पहले आप की जिह्वा दूषित होगी ,फिर सुनने वाले का चित्त मलिन होगा ,आज भ्रष्टाचार, बलात्कार ,हत्या जैसे शब्द जिस  के लिये बने हुए है,उन तक के लिये ही छोड़ दिये जाय छपने वाले पत्रों ,या प्रस्तुत किये जाने वाले सदन का विषय न बनाया जाय तो उचित होगा यह शासन-प्रशासन-पुलिस तक रखा जाय ,तो ही  ठीक है,अन्यथा एक महिला के सामने बलात शब्द का प्रयोग ही उसे डरा देता है , एक सज्जन को हत्या जैसा शब्द भयभीत करा देता है,यही बात पहनावा और परिधान के लिए भी लागू होती है ,जो नेत्रों को बोझिल करा देती है मन शर्म से झुक जाता है,अन्यथा प्रदूषण के युग में शरीर भी विकार को प्राप्त हो जायगें |

               बीती ताहि बिसार दें आगे की सुधि लेहि ...को ध्यान में रख कर अपनी शब्दावली को पुष्ट करने का समय आ गया है,अच्छे शब्दों का प्रयोग करें अच्छे समाज का निर्माण करें ,परिवार, समाज,सदन,और संसद में भी भाषा की शुचिता बनाये रखें वैदिक मान्यता भी है .....संगच्छध्वम संवदध्वम  .संवोमनांसि .........|

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