पोखर

                     पोखर


प्रकृति ,पुरुष  के

 सहचर पोखर

पुरखों  के

संस्कार सहेजे

पोखर ,

स्मृति झंझावातों में ,

सम्वेदना प्रतिबिम्बित ,

प्रकृति  के पास ,

मानवता  का वास ,

दोपहरी में,

करता सूरज ,

पोखर में,

 उन्मत्त स्नान ,

स्मृतियों के कोर ,

गोधूलि  के बादल

ओट  में लुक-छिप क्रीड़ारत

चाँद  इसी पोखर में ,

नि:शब्द ,शांत

 रजनी  के आँचल

पिछवाड़े  घर के  पोखर  में ,

सितारे छिटके है गगन  के,

करते अटखेलियाँ ,

पोखर में ,

कमलिनियों  का हास-परिहास,

पोखर में उल्हास ,

सूख गये पोखर ,

बस  गये नगर ,

पौध  ऊगे है कंक्रीट  के

सत्पथ साथी डामर के ,

लोभ-लालसा की सरपट राह ,

मृग-मरीचिका की उठती लौ ,

गर्म हवा के झोके आते ,

तन्हा तन जल जाते ,

पोखर तट का ,

एक शिवाला ,

वृक्ष फलदार और फूलों का ढ़ेर ,

फलदार बने निवाला ,

फूलदार हुए आरती के फेर ,

अब अट्टालिका  से

 आते कूड़े  के ढ़ेर

मानवता की ऐसी छुप गयी

कहाँ बयार ,

पुरखों के प्रति

गुम हो गया प्यार

प्रकृति ,पुरुष  के

 सहचर पोखर

पुरुषों के संस्कार

 सहेजे पोखर


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