जय हिन्दी

 

जय  हिन्दी

 

धरती की गरिमा नभ की ऊँचाई है हिन्दी 

सागर से गहरी मन की गहराई है हिन्दी ।।

विश्व बन्धुता की द्योतक मानवता की प्रेरक ,

सरस सुयोजित वाणी की सच्चाई है हिन्दी 

कर सोलह श्रृंगार अंक में नव रस को धारे ,

हर मौसम की अलग-अलग अंगडाई है हिन्दी 

युग-युग तक जिसकी महिमा हर जिह्वा पर होगी ,

सूर कबीरा तुलसी की कविताई है हिन्दी,

इसे राजभाषा कहकर सीमित क्यों करते हो ?

जब पूरी वसुधा पर ही सरसाई है हिन्दी 

जिसकी पावनता को नित दिनकर भी नमन करें ,

उस भारत के आंगन की अमराई है हिन्दी 

आओं ऊँचे स्वर में इसकी जय बोलें ,

देवो की वाणी से मिलकर आई है हिन्दी 

 

...रचनाकार ..................कनिष्ठा

 

 

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