सड़क

सड़क
सड़कें चौड़ी,
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कोलतार और रोड़ी हो गयी सड़कें चौड़ी,
शहरों के हो गए छोटे -छोटे मकान |
अट्टालिकाओं और कोटरों में गुम ,
वाशिंदों का मुस्कान भरा वितान ||
बढ़ रही सिर्फ सबकी भाषाई जुबान ,
शान्ति घट छोटी पडी अपनी जहान |
आशायें खोजती हर पल निशां में ,
अपने -अपने सपनों के आसमान ||
भीड़ और यातायात की आपाधापी में ,
रौदें जाते निशिदिन सब अरमान |
शोर तले बंट जाता निज का ध्यान ,
जेठ दुपहरी ढूंढ रहीं उपवन बचाने निज प्रान ||
बचाने को मर्यादा और क्षण भर की थकान ,
कालचक्र के अजब कड़ाहे का देखो ये पकवान |
पकते नश्वरजीव जगत के नर-नारी और जवान ,
सिमटता चरित्र बल बढ़ती उम्मीदें सारी ||
साकार बन खड़ी विषय उधारी सामान ,
इबारती जीवन लेख विलास की मारी |
दुःख खरोंचने को जीवन सारा लगता बलवान ,
सुख सहलाने को अपलक पल बिचारी । 
मृगमरीचिका देखना दिन में हो रहा आसान ,
रोड़ी की सड़कें चौड़ी शहरों के हो गये छोटे मकान ||
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