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मन का उछाह

  नैनों के भावों की गिरावट ,  जीवन के सुरक्षा की आहट ।  सबके पीछे यौवन ग़ुम सुम है।  मन का उफनता हुआ उछाह ।  किसका किस पर करें विश्वास ।  सबके पीछे छुपा मन टूट गया।  परवीन हो झुकी कमर पर नर ।  एक तन भी सौतन कहते बाज़ार।  तू कह दे मजदूर बनातीं शौहर ।  घर बैठे कुछ होता क्या मंजूर ।  धन जीवन बिना नहीं मजूर सही।  जीवनचर्या अंगीठी में तो फूंक गयी।  तन मन अपने अचरा पसीन सुखाती।  रोटी जलने से हाथ जला उसे बचाती।  झाड़बुहार किसी को नहीं दिखतीं बहू जो हूं।  चीर पीर पानी पुरुष जीवन की है वीरता ।  यौवन मुस्कुरा कर कहता सब अपना है।  भविष्य सन्तति दोनों सोचते यही जिन्दगी है।  क्या सधवा विधवा सब सुरक्षा संबंध मधुर।  सबके पीछे छुपा मन का उमंग उछाह।  अतीत के पारम्परिक के ताने बाने से मौन।  सुखद जीवन का निकल पड़ा नया प्रवाह। ।  ******

नागरी हिन्दी के संवाहक:महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी

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 नागरी हिन्दी के संवाहक : महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~                                                       महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी, भारतीय नागरी, हिन्दी भाषा के शिखर पुरुष है, जिनसे, हिन्दी भाषा की गति का प्रवाह संस्कारित होता है । उन्होंने हिन्दी लेखनी की धुंधली रेखा में नवतूलिका से, जीवन रंग प्रदान करने का सत्प्रयास किया, जिस समय हिन्दी का आन्दोलन प्रगति पर था और हिन्दी गद्य की लड़ाई के साथ हिन्दी पद्य भी राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर आगे बढ़-चढ़कर अपना योगदान कर रहे थे, उस समय समाज में कोई अन्यथा भाव न हो जाए ।साहित्यिक दृष्टि से भाषा को राष्ट्रधर्म  प्रधान मानकर रचनाधर्मिता की जा रही थी, उसी समय काशी में एक से एक सुनाम धन्य विद्वत् जनों का जन्म भी हो रहा था ।                         बाबू श्याम सुन्दर दास ने लिखा है...

महालया

महालया शब्द का अर्थ आनंद निकेतन है , आलय अर्थात् घर इस दिन मह यानि आनंदित हो जाना है , और महालया पर्व महाशक्ति स्वरुपिणी माँ दुर्गा के सम्मान और महिषासुर मर्दिनी के रुप में आने की सूचना है ।मार्कण्डेय पुराण के अनुसार प्राणी का अस्तित्व देह तक ही सीमित है , देह के जन्म के साथ उसका जन्म तथा देह की मृत्यु के साथ ही उसकी मृत्यु होती है ।   देह के पहले या बाद उसका किसी भी प्रकार का कोई अस्तित्व नहीं रहता है । विषय सुख ही परम सुख है , और प्रभुत्व का अधिकाधिक विस्तार ही उस सुख का उपाय है ।किसी भी प्रकार उसका सम्पादन ही परम पुरुषार्थ है ।इससे परे न कोई वस्तु है और न इससे अधिक किसी को कुछ करना है । इस प्रकार के विचार ही असुर है , और इन विचारों की पुष्टि एवं बल वृद्धि जिससे हो वही इनका अधिपति महिषासुर है ।   और वह महिषासुर का   तामस अहं भाव है , यह अहं भाव इन विचार रुप अपने असुर सैनिकों द्वारा सद्विचार रुप सुरों ...