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कहानी - मॉर्निग वाक्

कान्हापुर का नामोनिशां मिटे वर्षों बीत गये,ब्रिटिश इण्डिया कार्पोरेशन,   जैसी बड़ी मिल की चिमनी का धुँआ बुझ चुका  था ,इक्का-दुक्का मिलें ही छिट-फुट रुप में पनकी में चल रही थी,  जहाँ-तहाँ सड़कों पर ट्रेन की पटरियां बिछी पड़ी है , जो याद दिला रही है कि कानपुर कभी मैनचेस्टर ऑफ इंडिया रहा होगा । एक ओर गुरुदेव  पैलेस का मार्ग ,विश्वविद्यालय ,दलहन संस्थान, आई आई टी कानपुर का शैक्षणिक माहौल का क्षेत्र है , यहीं पर नया बसने वाला है ,कानपुर का कल्याणपुर आवासीय योजना विहार ,जिसमें दो मुख्य मार्ग बरबस लोगों के आकर्षण के केन्द्र है । आशीर्वाद एन्क्लेव और उदयन एन्क्लेव, किन्तु यहां तो लोग पहले से ही जमीन पर अपना मकान बनाये हुए  रह रहे हैं ,यहाँ  के कुछ लोगों को लगता है कि अब हम लोग ग्रामीण से शहरी हो जायगे ,इनमें सिऊ तो बुजुर्ग हो चुके है ,उनके नाती - पोते का परिवार है ,दूसरा परिवार रजिन्दर का है ,बढ़ती उमर  के कारण , जहाँ  सिऊ के मुँह में एक-एक करके दांत घटते जा रहे हैं , वहीं रजिन्दर की  खोपड़ी के सभी बाल झक सफेद हो चुके है ,मुहल्ले के बच्चे उन्हें बाबा- बाबा कहते हैं,उन्हीं  के घर के पिछवारे पियारे भ

तुम्हीं हो मेघ

  तुम्हीं   हो   मेघ   प्रकृति   की   कोख   से   , अदृश्य   से   दृश्यमान   , तुम्हीं   तो   हो   मेघ   , आस   लगाये   किसान   , आतप   शरद   के   मध्य   तुम्हीं   हो   । सागर   , नदी , सरोवर   से   तुम्हीं   हो   , पर्वत   की   ओट   , घर्षण   या   चोट ,  तुम्हीं   हो   | रक्तिम , कालिमा   , सिंदूरी , श्वेत   का   आभास   , शीतलता , आर्द्रता   मेघ   ही   जीवन   श्वास   । इंद्र  - बज्र   की   हुंकार   , गर्जनों   में   भी   प्रकाशमान , मेघ - बूँद   से   माटी   सोधती  , ताल - तलैया   रसाप्लावित   लहराते   , चारो   कोरो   पर   दादुर   गीत   उच्चार   ते , प्रकृति   पुरुष   उदार   मना , चिरयौवन , उमड़  - घुमड़ , घहराते , ललचाते , मयूरों   को   लजियाते   , यक्ष - विरह   संदेशक   , अलक - पलक   उर् - झाते   , मेघ   तुम्हीं   हो   , स्वाती   बूँद   तुम्ही   में   , जड - चेतन   अमरत्व   तुम्हीं   से   , सरोवर ,  नदियाँ   अस्मिता   खोने   को   बेबस   , सागर   खारे   पानी   को   बरबस   रोता   है   । परिवर्तन   की   आंधी   में   नैसर्गिकता   क