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दैहिक भाषा (बाॅडी लैंग्वेज)

दैहिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज)                                                                           आकारैरड्गितैर्गत्या चेष्टया भाषणेन च। नेत्रवक्त्रविकारैश्च  लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मनः।  मित्रभेद पंचतंत्र 45।।                         अर्थात् मनुष्य के आकार प्रकार, इंगित, गति,चेष्टा, वचन, नेत्र एवं मुख गत विकारों के द्वारा उसके अन्तःस्थ भावों का पता लग ही जाता है।  आपने कभी सोचा है कि आखिर कौन सी वजह है कि लोग बिना आपके कुछ कहे भी आपके मन:स्थिति  को भाँप लेते है ? या फिर आप भी झट से अपने आस-पास के लोगों का मन जान लेते हैं ? यह कमाल लोगों की दैहिक भाषा का है । बॉडी लैंग्वेज विशषज्ञों का तो मानना है कि हमारा शरीर मात्र सात प्रतिशत संदेश शारीरिक भाषा और व्यक्तित्व (पर्सनैलिटी )को ही शब्दों से सामने वाले व्यक्ति तक पहुंचा पाता है । शेष कार्य बॉडी लैंग्वेज करती है ,हमारे बोलने और शारीरिक हाव-भाव के तरीके को बॉडी लैंग्वेज या दैहिक भाषा की श्रेणी में रखा जाता है,यह काफी हद तक हमारे व्यक्तित्व (पर्सनैलिटी) का एक हिस्सा होता है | सफलता पाने के लिए जितनी अहम मेहनत है , उतनी ही अहमियत  व्यक्तित्व या

अंगुलियाँ

  अंगुलियाँ सुनाते है अँगुलियों की कहानी जुबानी । आकार प्रकार है अपने आप में बारानी । बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी । अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।                       अँगुलियों में   वर्तमान का होता संबल ।                       इशारा   कर बनाती   अचल को सचल ।                       अंगुलियाँ न हो तो लेखनी न हो सबल ।                       तार बेतार   छिपा अँगुलियों की पहल । बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी । अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।           सीमाओं पर जितनी चौकसी की होती मजबूरी ।       उससे भी ज्यादा हथेली में होती है   अंगुली जरूरी        अंगुलियाँ थाम बापू से सीखते है सब   देश सेवा ।       आज अँगुलियों से   चख रहे   है   लोकतंत्र का मेवा । बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी । अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।    अंगुलियों   के ककाहरों ने उपजाया साहित्य भण्डार ।        अंगुलियाँ   बनी   कभी सुख-दुःख   का भी   आगार ।         अँगुलियों के   योग कालिदास विद्योत्तमा पा चुके ।      गुणी   करतबी अँगुलियों से अमर साहित्य   गा चुके । बाबासाहेब