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वाणी

 वाणी ^^^^^ मनुष्य की सुन्दरता गले में माला पहनने से नही होती है , माथे पर चन्दन लगाने से नही होती है , बहुत साफ़-सफाई करके स्नान करने से भी सुन्दरता नहीं होती है , चन्दन हल्दी का उबटन भी सुन्दरता की वृध्दि नहीं करते है बालों में सुंदर फूल लगाने से सुन्दरता नही बढ़ जाती है । यह सब साज-संवार का प्रयास मात्र कहलाता है , जो क्षणिक है,जिसे कभी भी उतारा जा सकता है अथवा जो कभी भी उतर सकता है , अथवा जो नष्ट प्राय है , मूलत:मानव जीवन में संस्कार की वाणी ही सुशोभित रहती है , जो शुध्द,प्रिय,और मधुर हो,इसलिए उसे ही धारण करना मनुष्य का परम कर्तव्य होना चाहिए,कबीर दास जी ने भी कहा है- वाणी एक अमोल है जो कोई बोलहि जानि । हिये तराजू तौलिके तब मुख बाहरि आनि । ह्रदय के दोनों पक्षों को तराजू मानकर तौल लेना चाहिए कि इसके अच्छे बुरे पक्ष क्या होगे , उसके बाद ही मुख से बाहर वाणी का निकलना उचित है , इस प्रकार की वाणी लोगों के लिए सुख कारक ,हितकारक होती है,तभी तो कहते है - ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय । औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय । समाज में बढती विसंगतियों को ध्यान में रखकर वैदिक मन्त्र के रूप में कहा...