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अंगुलियाँ

  अंगुलियाँ सुनाते है अँगुलियों की कहानी जुबानी । आकार प्रकार है अपने आप में बारानी । बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी । अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।                       अँगुलियों में   वर्तमान का होता संबल ।                       इशारा   कर बनाती   अचल को सचल ।                       अंगुलियाँ न हो तो लेखनी न हो सबल ।                       तार बेतार   छिपा अँगुलियों की पहल । बाबू देहाती रहो या बन के रहो शहरी । अंगुलियाँ सदा से रही है समय प्रहरी ।           सीमाओं पर जितनी चौकसी की हो...