मन का उछाह
नैनों के भावों की गिरावट , जीवन के सुरक्षा की आहट । सबके पीछे यौवन ग़ुम सुम है। मन का उफनता हुआ उछाह । किसका किस पर करें विश्वास । सबके पीछे छुपा मन टूट गया। परवीन हो झुकी कमर पर नर । एक तन भी सौतन कहते बाज़ार। तू कह दे मजदूर बनातीं शौहर । घर बैठे कुछ होता क्या मंजूर । धन जीवन बिना नहीं मजूर सही। जीवनचर्या अंगीठी में तो फूंक गयी। तन मन अपने अचरा पसीन सुखाती। रोटी जलने से हाथ जला उसे बचाती। झाड़बुहार किसी को नहीं दिखतीं बहू जो हूं। चीर पीर पानी पुरुष जीवन की है वीरता । यौवन मुस्कुरा कर कहता सब अपना है। भविष्य सन्तति दोनों सोचते यही जिन्दगी है। क्या सधवा विधवा सब सुरक्षा संबंध मधुर। सबके पीछे छुपा मन का उमंग उछाह। अतीत के पारम्परिक के ताने बाने से मौन। सुखद जीवन का निकल पड़ा नया प्रवाह। । ******